विश्व हिंदी सम्मान

Ratnakar Narale

Namaste
Toronto  Canada 
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Prof. Ratnakar Narale.
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Epic Compositions

महाकाव्य संपदा

बृहत्काव्यं महाकाव्यमिति वदन्त्यपण्डिताः । अष्टसर्गरसक्लृप्तं वदन्ति काव्यपण्डिताः ।। काव्य बड़ा दोने से महाकाव्य नहीं हो जाता. कम से कम आठ सर्गों से युक्त; जिसमें वीर, शृंगार या शांत रस प्रधान हो; और जिसका नायक कोई देव-देवता, राजा अथवा गुणसंपन्न धीरोदात्त वीर पुरुष हो वही काव्य महाकाव्य होता है. प्रस्तुत बाल श्रीकृष्ण दोहावली महाकाव्य सर्वतोपरी दैवी अद्भुत लीलाओं से ओतप्रोत भरा हुआ व आध्यात्मिक गहनता से परिपूर्ण, प्रतिभावान और जागतिक इतिहास में अनुपम है. विशेष बात यह कि इस काव्य के दोहे बोलचाल की साधारण सरल हिंदी भाषा में ही रचे गए हैं.

           

    

This Bhakti Sangit is the foundation of Ratnakar’s musical copmpsitions which are present in his several books as shown below. For an example of his beautiful devotional composition, please see one antara of his following song devoted to Shri Rama.

   भारतीय संस्कृति का ऐसा कोई भी पहलू नहीं है जो रत्नाकी के महाकाव्यों में सन्नद्ध न किया हो. ये महाकाव्य काव्यप्रेमियों के लिये कला के विशाल भांडागार हैं. इनके किसी भी गीत के हारमोनियम स्वर लिपि के लिए इन 8 महाकाव्यों के रचेता से संपर्क करें.

Creator of Chhanda and Raaga :

With the passion for creating advances in music and prosody, Ratnakar is the creator of his own Ratnakar Chhanda and Ratnakar Raaga used them in his epic compositions.

 

Ratnakar Chhanda :

 

संगीतश्रीकृष्णरामायण छन्दमाला, मोती 333

रत्नाकर छन्द

13, 11, 13, 13

अष्टावक्र

टेढ़ा आठों अंग से, अष्टावक्र सुजान

ज्ञानी माना विश्व में, तत्त्वज्ञान विज्ञ प्रधान ।। 1076/7068

 

रररत्नाकर छन्द : अर्ध सम दोहा छन्द के चतुर्थ चरण में दो मात्रा मिलाकर यह 50 मात्रा का विषम छन्द होता है । अतः इसका सूत्र 13, 11, 13, 13 होता है । सम चरण के अंत में ज गण ( । ऽ । ) और विषम चरण के अंत में र गण (ऽ । ऽ) उत्तम होता है । विषम चरणों के अंत में ज गण ( । ऽ । ) नहीं आना चाहिये । अन्य वणों के लिये मात्रिक बन्धन नहीं होता है । दोहे में दो मात्रा मिला कर प्राप्त होने के कारण इसको दो-दो (दोहे-में-दो) छन्द भी कहा जा सकता है ।

 

   Ratnakar Raag :

    रत्नाकर राग : बिलावल राग में , , नि और नि स्वरों का लयानुसार मुक्त प्रयोग करके रत्नाकर राग सिद्ध होता है.

 संगीतश्रीकृष्णरामायण गीतमाला, पुष्प 422

राग : रत्नाकर, तीन ताल 16 मात्रा

संगीत दायिनी वन्दना

स्थायी

हम ध्यान धरें माँ का, स्वर गान करें माँ का ।

अज्ञान परे करने, वर दान हमें दो माँ ।

स्वर ज्ञान हमें दो माँ, हम ध्यान धरें माँ का ।।

सारे पप धसांध प रे- - - -, रेरे -प पधसां धप रे- - - -

--प पध- पमरे- - - -, प ध-सां धप- - रे- - - - -

सारे पप धसांध प रे- - - - -, रेरे -प पधसां धप रे- - - - ।।

अंतरा-1

संगीत की देवी तू, काव्य कला रस सेवी ।

हर कारीगर की माता, पावन सरगम सरिता ।

सुर सुंदर की मूर्ति, कवि की तन्मय स्फूर्ति ।

तुझसे चिन्मय धरती, कल्याण करो माता ।

निस्तार करो माता, हम ध्यान धरें माँ का ।।

--प प धपम मप- - - -, -प पप- धप मपध- - - - -

पध ध--धध प- -- - -, पधपप पपरे रेसा- - - - -

सारे -पप धसां धप- - - - -, सारे प प-पध सांधप- - - -

सारे- -पध सांधप- - - -, -रें-रें सांध- पधपरे- - -

सारे-प धसांध परे - - -, रेरे -प पधसां धप रे- - - - ।।

अंतरा-2

वचनों की रानी तू, निर्मल अमृत वाणी ।

ज्ञान की अक्षय दानी, कोई नहीं तव सानी ।

देव देवता सारे, ऋषि-मुनि कवि जन भारे ।

कहते बाँह पसारे, आधार करो माता ।

उद्धार करो माता, हम ध्यान धरें माँ का ।।

 

छंद मीमांसा संपदा

Ratnakar has initiated a new rich faculty of writing छंद मीमांसा of the great epics of our past Sanskrit Literature. It provides a wealth of new knowledge and research topics for our scholars and research students.

 

 

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